Urdu Ke Mashhoor Shayar Momin Khan Momin Aur Unki Chuninda Shayari (उर्दू के मशहूर शायर मोमिन ख़ां 'मोमिन' और उनकी चुनिंदा शायरी)
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By Narender Govind Behl
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मशहूर शायर मोमिन ख़ां 'मोमिन' मुगलकाल के आखिरी दौर के शायर थे। इसके अलावा 'मोमिन ' मिर्ज़ा ग़ालिब और जौक़ के समकालीन भी रहे। उन दिनों मोमिन बहादुर शाह ज़फर के मुशायरों में शामिल होने लाल किले भी जाते थे। आज भी मोमिन का नाम अत्यंत भावुक और संवेदनशील शायरों में लिया जाता है। उनका आशिकाना मिज़ाज उनकी शायरी में भी झलकता था। आमतौर पर उनकी पूरी शायरी श्रृंगार रस से भरी हुई है। यही कारण है कि इश्क मोहब्बत की रचनाओं को लिखते समय उपमाओं और अलंकारों के ऐसे मोती पिरोते थे कि रचनाएँ सीधा दिल को छू जाती थी।
'मोमिन' की शायरी बहुत उच्च स्तर की हैं। उनकी भाषा में कुछ ऐसे गुण विद्यमान हैं, जो उनके प्रत्येक शे'र में दिखाई देते हैं। आज भी उनके कई शे'र मुहावरों में रूप में प्रयोग किए जाते हैं। मोमिन श्रृंगार रस के महारथी शायर थे। इस मामले में आज के दौर में भी कोई उनका सानी नहीं।
"मुझे जन्नत में वह सनम न मिला
हश्र और एक बार होना था ।"